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ब्रह्मकमल का पुष्प जो हेमकुंड साहिब हिमालय में खिलता है जो 14 वर्ष में एक बार दिखाई देता है

ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं।ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है।  ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। 


ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। 


औषधीय उपयोग 

इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।



सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते स्थानीय निवासी कठिन डगर पार कर हिमालय की उंचाई पर स्थित हेमकुंड व फुलों की घाटी से राज्य पुष्प ब्रह्मकमल लाकर मां नंदा को अर्पित करते हैं। भाद्र शुक्लपक्ष में होने वाली नंदा अष्टमी इस क्षेत्र में विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार आस-पास गांवों के लोग भाद्र शुद्धि के साथ ब्रह्मकमल को चुनने के लिए रवाना होते हैं। 

भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को लोग मां नंदा के मंदिरों में ब्रह्मकमल चढ़ाते हैं। मां नंदा को ब्रह्मकमल काफी प्रिय हैं|


पौराणिक मान्यताएं

ब्रह्म कमल से जुड़ी बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनमें से एक के अनुसार जिस कमल पर सृष्टि के रचयिता स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं वही ब्रह्म कमल है, इसी में से कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी।दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार जब पांडव जंगल में वनवास पर थे, तब द्रौपदी भी उनके साथ गई थी। द्रौपदी, कौरवों द्वारा हुए अपने अपमान को भूल नहीं पा रही थी, साथ ही वन की यातनाएं भी मानसिक कष्ट प्रदान कर रही थी।ऐसी जानकारी अपने मोबाईल में पाने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे , हमारे सोसियल मिडिया ग्रुप को जॉइन करे | जॉइन करने के लिए क्लिक करे

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