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श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी जीवन सफ़र

अटल बिहारी बाजपेयी ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला। वह भारत के सबसे सम्माननीय और प्रेरक राजनीतिज्ञों में से एक रहे। वाजपेयी ने कई विभिन्न परिषदों और संगठनों के सदस्य के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं। वाजपेयी एक प्रभावशाली कवि और प्रखर वक्ता थे।श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत माता के एक ऐसे सपूत हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और पश्चात भी अपना जीवन देश और देशवासियों के उत्थान एवं कल्याण हेतु जीया तथा जिनकी वाणी से असाधारण शब्दों को सुनकर आम जन उल्लासित होते रहे और जिनके कार्यों से देश का मस्तक ऊंचा हुआ ।


वास्तविक नाम : अटल बिहारी वाजपेयी
उपनाम : अटल जी
व्यवसाय : भारतीय राजनेता 
जन्मतिथि : 25 दिसंबर 1924
जन्मस्थान : ग्वालियर राज्य, ब्रिटिश भारत (अब, मध्य प्रदेश, भारत)
पिता :  कृष्ण बिहारी वाजपेयी (कवि और स्कूल मास्टर)
माता : कृष्णा देवी
भाई: अवध बिहारी वाजपेयी, प्रेम बिहारी वाजपेयी, सुदा बिहारी वाजपेयी
बहन:  उर्मिला मिश्रा, विमला मिश्रा, कमला देवी
शैक्षिक योग्यता  : 

ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मी बाई कॉलेज) से हिंदी
अंग्रेजी और संस्कृत के साथ स्नातक दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज,
कानपुर से राजनीति विज्ञान में एम.ए (M.A)

पुरस्कार    : 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
                   1994 में सर्व श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार दिया गया।
                   2015 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 
मृत्यु: अगस्त 16, 2018 (उम्र 93), एम्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली, भारत 

प्रारंभिक जीवन 

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ। वह अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी के सात बच्चों में से एक थे। उनके पिता एक विद्वान और स्कूल शिक्षक थे।इन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज - जो अब लक्ष्मीबाई कॉलेज कहलाता है - में तथा कानपुर उ. प्र. के डी. ए. वी. कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और राजनीति विज्ञान में एम. ए.की उपाधि प्राप्त की. सन् 1993 मे कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा दर्शन शास्त्र में पी.एच डी की मानद उपाधि से सम्मानित किए गए.

वाजपेयी की राजनैतिक यात्रा

वाजपेयी की राजनैतिक यात्रा की शुरुआत एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई। 

1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण वह अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। इसी समय उनकी मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई, जो भारतीय जनसंघ यानी बी.जे.एस. के नेता थे। उनके राजनैतिक एजेंडे में वाजपेयी ने सहयोग किया। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते मुकर्जी की जल्द ही मृत्यु हो गई और बी.जे.एस. की कमान वाजपेयी ने संभाली और इस संगठन के विचारों और एजेंडे को आगे बढ़ाया। 

सन 1954 में वह बलरामपुर सीट से संसद सदस्य निर्वाचित हुए। छोटी उम्र के बावजूद वाजपेयी के विस्तृत नजरिए और जानकारी ने उन्हें राजनीति जगत में सम्मान और स्थान दिलाने में मदद की। 

वर्ष 1957 में, उत्तर प्रदेश के बलरामपुर निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार (दूसरे आम चुनावों में) अटल जी को लोकसभा के लिए चुना गया था।

सन 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। दो वर्ष बाद उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए वहां की यात्रा की। भारत पाकिस्तान के 1971 के युद्ध के कारण प्रभावित हुए भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक रिश्ते को सुधारने के लिए उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा कर नई पहल की। जब जनता पार्टी ने आर.एस.एस. पर हमला किया, तब उन्होंने 1979 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 

सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने की पहल उनके व बीजेएस तथा आरएसएस से आए लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत जैसे साथियों ने रखी। स्थापना के बाद पहले पांच साल वाजपेयी इस पार्टी के अध्यक्ष रहे।

सन 1992 में देश की उन्नति में योगदान के लिए पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया।

सन 1996 में  पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने।

सन 1998 में  दूसरी बार भी देश के प्रधानमंत्री बने।

सन 1999 में  तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने और दिल्ली से लाहौर के बीच बस सेवा संचालित कर इतिहास रचा ।

सन 2005 में  दिसंबर माह में राजनीति से संन्यास ले लिया।

सन 2015 में  देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।

एक अनुभवी राजनीतिज्ञ और उत्कृष्ट सांसद होने के अलावा, अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रसिद्ध कवि और सभी राजनीतिक दलों में सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं।

वाजपेयी समस्त जीवन अविवहित रहे। उन्होंने राजकुमारी कौल और बीएन कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को गोद लिया था।

मृत्यु

 

सन 2009 में उन्हे दौरा पड़ा था, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही गया।  11  जून 2018 को उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहाँ 16 अगस्त 2018 को वे परलोक सिधार गये। 17 अगस्त को उनकी दत्‍तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्या मुखाग्नि दी। राजघाट के पास शान्ति वन में स्मृति स्थल में उनकी समाधि बनायी गयी है।

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