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अश्‍वत्थामा महाभारत के एक अजय और अमर योद्धा जो आज भी जिन्दा है

अश्‍वत्थामा  श्री गुरु द्रोण  और कृपी माता के पुत्र थे | अश्‍वत्थामा का जन्म द्वापर युग में हुआ था | कहा जाता है की जब अश्‍वत्थामा  का जन्म हुआ तब उचैश्रवा अर्थात इंद्र के अश्व की जैसा उसकी आवाज हुई थी , जो चारो दिशाओ में गूंजा था |इसी लिए उसका नाम अश्‍वत्थामा  रखा गया |अश्‍वत्थामा  बहुत ही साहसी और शक्तिशाली योद्धा थे |महाभारत के युद्ध में वो अकेले ही सभी को हरा सके उतनी उनमे शक्ति थी | अश्‍वत्थामा धनुरविद्या में अर्जुन जितने श्रेष्ठ थे , क्युकी वे सभी  दिव्यास्त्र ,आग्नेयास्त्र ,वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र,ब्रह्मास्त्र ,नारायणस्त्र,ब्रह्मशिरस्त्र आदि चलाना जानते थे और उनके सभी रहस्य जानते थे |गुरु द्रोणाचार्य ने अश्‍वत्थामा  को उत्तर पंचाल का आधा राज्य दिलाया था |उसके सिवा नारायणास्त्र मात्र अश्‍वत्थामा ही चला जानते थे |उसका उपयोग उन्होंने अपने पिता  गुरु द्रोणाचार्य की महाभारत के युद्ध के समय क्रोधित होकर पांडवो पे किया था | 


गुरु द्रोणाचार्य ने ब्रह्मास्त्र चलाना अर्जुन और अश्‍वत्थामा दो ही को सिखाया था |उसका उपयोग दोनों ने महाभारत में किया था , किन्तु नारद मुनि ने उसको वापस लेने को कहा तब अर्जुन ने उनकी बात मानकर वापस ले लिया और अश्‍वत्थामा ने ऐसा नहीं किया , और ब्रह्मास्त्र का प्रहार अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित  जो उस समय गर्भ में था उस गर्भ पर उसको को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। लेकिन तब भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा की, और अश्वत्थामा को सजा देने के लिए उनके माथे से मणि निकाल ली। और अश्वत्थामा को युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दिया।इस महाभारत के युद्ध में १८ लोग जिन्दा बचे थे उनमे से एक ये अश्‍वत्थामा थे |जो आज भी अजय और अमर है |

कहा जाता है की आज भी मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के असीरगढ़  के किल्ले में अश्‍वत्थामा के मौजूद होने के अवशेष पाए है | वहा महाभारत काल का पुराना शिव मंदिर है, जो गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है |वहा हररोज सुबह को शिवजी पर ताजे फुल की पूजा की होती है |किल्ले के आसपास घना जंगल है और शाम को कोई भी वहा भटकता नहीं है | कहा जाता है की हररोज रात को अश्‍वत्थामा यहाँ आते है और ताजे फूलो से भगवन शिव की पूजा करते है | सुबह को जब मंदिर खोला जाता है तो वो ताजे फुल भी वहा शिवलिंग पर पाए जाते है | गाव के  निवासियों के अनुसार कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं।गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है |

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