गुजराती केलेंडर अनुशार श्रावणमहिना पूरा होने के बाद भाद्र महिना शुरू होता है | भाद्र महीने में भी के कई त्यौहार आते है ,जिसमे प्रथम सूद पंचमी के दिन सामा पंचमी का त्यौहार आता है | इस त्योहार को सामा पंचमी भी कहते है | अंग्रेजी केलेंडर अनुशार ये त्यौहार सितम्बर महीने में आता है | स्त्रिया रजोदर्शन के समय दरमियान अनजाने में दोष हो जाते है ,उसको निवारने के लिए सामा पंचमी का व्रत करते है | इससे सारे दोषों का निवारण हो जाते है |
व्रत की पूजा विधि और महत्व
सामा पंचमी का व्रत गुजराती भाद्र महिने के सूद पक्ष के पांचवे दिन किया जाता है | इस दिन जो स्त्रीया व्रत करती है वो सुबह जल्दी उठकर अधेडा का दातुन करके, मिटटी से नहाकर, माथे में अमला की भूकी डालकर ओने बालो को धोना है | इस दिन सामा खाना है और खेत में जो अनाज खेडा ना हो ऐसा अनाज खाना है और फलाहार भी खा सकते हो | दूसरा कोई अनाज खाना नहीं है | स्नान करने के बाद महादेवजी की भक्ति भाव पूर्वक पूजा करनी है | इस तरह पांच साल के लिए यह व्रत करना है | उसके बाद इस व्रत का उजावना करना है | इस समय अरुधती सहित सप्तऋषि की पूजा करनी है और भ्राह्मिन को भोजन करके यथा शक्ति दान दक्षीणा देना है |इस व्रत करने से सर्व दोषों का निवारण होता है |
व्रत कथा
कई सालो पहेले की आत है .विदर्भ देश में उतंक नमक एक पवित्र भ्राह्मण उसकी पत्नी संध्या और पुत्र-पुत्री के साथ रहता था | पुत्र सुदेश सर्व विद्या में निपुण था |पुत्री सतमा का विवाह हो गया था | दोनों निश्चिंत थे पर एक साल के बाद उनकी पुत्री पर दुःख के बादल छा गए | उनका पतिका मांदगी के कारण मृत्यु हुआ | वो रोटी हुई उनके माता पिता के पास आई | उन्होंने उस बात जानकर बहुत दुःख जताया पर इसका कोई उपाय नहीं था | उन्होंने पुत्री को आश्वाशन देकर धर्मं कार्य में मन लगाने को कहा |
उतंक और संध्या का मन अब संसार में से उठ गया था | वो जंगल में आश्रम बनाकर पुत्र सुदेश और पुत्री सत्तमा के सस्थ धर्मं परायण जीवन जी रहे थे | सत्तमा धर्महकती में सारा दिन पसर करती फिर ही उनका दिन नहीं पूरा होता तो वो दोपहर को आश्रम के सामने के पेड़ के निचे खटिये ने सो जाती थी |
एक दिन वो सोती थी तब उनके शरीर में से परु निकलने लगा और कीड़े पड़े | यह देखकर सत्तामा गभरा गई और रोती हुई उनकी माता के पास पहुची | माता गभरा गई और सा बात उतंक को बताई | उतंकने सबसे पहेले उनको आश्वाशन देकर पुत्री को नहलाने को कहा | उससे सत्तामा को रहत हुई | उसके बाद संध्या ने बहुत आग्रह के साथ उनके परभाव के बारे में पूछा तो उतंक ने अपने त्रिकाल ज्ञान से पुत्री का भूतकाल का पता करके पत्नी को कहा की सत्तामा एक भ्राह्मन की पत्नी थी | वे रजस्वला धर्म का पालन नहीं करती थी | रजस्वला स्त्री को इस चार दिन कुछ काम करना नहीं चाहिए और स्पर्श से दूर रहना चाहिए | किन्तु हमारी पुत्री ने वे धर्मं ऋषिपंचमी की निंदा की थी और सामा पंचमी का व्रत करती कन्याओ की मजाक उड़ाई थी |इसी लिए इस जन्म में पति सुख से वंचित रही उनके शरीर में कीड़े पड़े |
उत्तंक की पत्नी यह जानकर फिरसे विलाप करने लगी | इसी लिए आश्वाशन देते कहा जिस व्रत का अनादर किया उस व्रत को फिरसे आदर करके भक्तिभाव पूर्वक पूरा करे तो इस पाप का निवारण ह सकता है | उन्हों ने व्रत की पूरी विधि बताई , और ऋषि पंचमी के दिन ये व्रत करने से सर्व दोषों का नाश ओगा | उसके बाद नैवेध में फल का प्रसाद रखकर महर्षि कश्यप , विश्वामित्र ,अत्री , भरद्वाज,गौतम ,जामदअग्नि ,अरुधती सहित वशिष्ट का ध्यान करना और उनकी मानसिक पूजा करना |
सत्तमा ने ये व्रतकी विधि जानकर सामा पंचमी के दिन व्रत का आराम्ह कर दिया | धीरे धीरे उनके शरीर से सन गायब हो गया और सुन्दर स्त्री हो गई दोष मुक्त हो गई |
सामा पंचम का ये व्रत कोई स्त्री करेगी ,उनकी वार्ता पढ़ेंगी उनके सभी दोष मुक्त होगे और सभी सुख संपति होंगे |
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