इस पोस्ट में हम आपको भारत के महान संत गोस्वामी तुलसीदास के जीवन के बारे में कुछ सत्य बताएँगे |
पूरा नाम : गोस्वामी संत तुलसीदासजी
जन्म: संवत १६६४ (१५३२ई०)( श्रवण मास का सातवा दिन )
जन्म स्थान: राजापुर, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
बचपन का नाम: तुलाराम (रामबोला)
पिता का नाम : आत्माराम दुबे
माता का नाम : हुलसीदेवी
पत्नी का नाम : रत्नावली
गुरु का नाम : श्री नरहरिदास
भाषा तथा प्रमुख ग्रन्थ: ब्रज तथा अवधी (रामचरितमानस)
मृत्यु: संवत 1680 (असीघाट)
संत तुलसीदास को हिंदी साहित्य के आकाश का एक मात्र नक्षत्र कहा जाता है | संत तुलसीदास भारत देश के बहुत ही बड़े कवि के नाम से भी जाना जाता है | बचपन से ही वह प्रभु श्री राम की भक्ति में डूबे रहते थे |श्री राम के प्रति उनको अपार श्रद्धा थी और जन्म के समय वो रोने के बजाय 'राम राम ' बोलने लगे , इसी वजेसे लोग उन्हें 'राम बोला ' से भी जाने जाते है | बचपन से ही उन्होंने संस्कृत और अन्य भाषा की शिक्षा प्राप्त कर ली थी |कहा जाता है की तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में १२ महीने तक रहे उसी वजे से जन्म के समय इनके मुह में पुरे दांत थे, अंत: अशुभ मानकर माता पिता द्वारा त्याग दिये जाने के कारण संत नरहरिदास ने काशी में उनका पालन पोषण किया था | उनके जन्म के चौथे दिनमें ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी | थोड़े समय बाद उनकी माता की भी मृत्यु हो गई | फिर अपनी माता की एक चुनिया नाम की सेविका उन्हें अपने साथ अपने शहर हरिनगर ले गई | वो भीपांच साल तक उसकी परवरिस करके चल बसी | अब तुलसीदासजी फिर से अकेले हो गए और घर घर भीख मांगके अपना गुजरान चलाने लगे |उसी समय माना जाता है की स्वयं माता पार्वती ने एक ब्राह्मण का स्वरुप धारण करके तुलसीदासजी का पालन पोषण किया था |
तुलसीदासजी का विवाह रत्नावली नामक सुन्दर कन्या से हुआ था |थोड़े समय के बाद उन्होंने तारक नाम के पुत्र को जन्म दिया | थोड़े समय में ही उनके पुत्र की भी मृत्यु हो गई | फिर एक बार उनकी पत्नी अपने मैके गई हुई थी |तुलसीदास को उनसे मिलने का मन हुआ , और वो लोकलज्जा की पर्व किये बिना वहा से निकल पड़े |उस समय धोधमार बारिस चल रही थी पर वो रुके बिना चलते रहे |रस्ते में नदी आई पर अँधेरी रात में पत्नी प्रेम में अंधे तुलसीदास ने एक मरे हुए आदमी की लाश को तरापा मानकर उनपर सवार होकर नदी पार कर ली, और साप को रस्सी मानकर अपनी पत्नी के कमरे में पहुच गए |रत्नावली ने ये सब जाना और तुलसी दास को कहा " जैसी प्रीत हम से , वैसी हरी से होय ; चला जाये वैकुठ में , पल्ला न पकडे कोई ". अर्थात की जैसा प्रेम तुमको मुजमें है , वैसा प्रेम जो भगवन में हो तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाये |बस तुलसी दास को इस वचनों ने हदय में छेद कर दिये और हानी पहुचाई ,और उसी समय से संसार का त्याग किया |और साधू जीवन अपना लिया |
संत तुलसीदास ने हमारे रामायण को संस्कृत भाषा में से हिंदी भाषा में अनुवाद किया | 'रामचरित मानस ' जैसे महाकाव्य की रचना भी की |उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्री राम और लक्ष्मण ने चित्रकूट में उनको साक्षात दर्शन भी दिए | उन्होंने और भी विनय पत्रिका ,कवितावली, दोहावली , गीतावली, बरवै रामायण ,जानकी मंगल ,रामलला नहछू ,वैराग्य संदीपनी , कृष्ण गीतावली , पार्वती मंगल ,रामाज्ञा प्रश्न , हनुमान बाहुक,तुलसी सतसाई , जैसी रचनाओ का भी निर्माण किया | सचमुच तुलसीदासजी संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदिकाव्य रामायण के रचयिता थे।
Nice info.
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